पवित्र रिश्ता... भाग-१ निशा शर्मा द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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पवित्र रिश्ता... भाग-१

नोएडा की एक पचास मंजिला सोसायटी, जहाँ हर तरफ़ बस इमारतें ही इमारतें, एक-दूसरे का मुँह ताकती हुई इमारतें ! नीचे बने हुए चिल्ड्रन्स पार्क में खेलते हुए बच्चे और इसी पार्क के ठीक सामने बनी हुई इमारत के दसवें माले पर चढ़ता हुआ सामान... शायद किसी नें अभी-अभी बनकर तैयार हुई इस इमारत के दसवें माले पर एक फ्लैट खरीदा है और आज वो लोग इसमें शिफ्ट भी हो रहे हैं ।

इसी फ्लैट के ठीक सामने किराए पर रहता है एक लड़का...रोहित !

"रोहित शायद तेरे सामने वाले फ्लैट में कोई रहने के लिए आ गया है, देख न सामान चढ़ रहा है,यार ! सही है अब तुझे कुछ ठीक लगेगा, पड़ोसी भी हैं अब तो", हिमांशु नें रोहित के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा ।

क्या पड़ोसी यार...तुझे तो पता है न कि यहाँ मकानमालिक किसी किराएदार से कितना सम्पर्क रखते हैं और फिर हम अकेले लड़कों से तो वैसे भी साले ऐसे भागते हैं जैसे कि हम कोई छंटे-छंटाए बदमाश हैं... जिसपर हिमांशु नें मुस्कुराते हुए रोहित के फ्लैट का खुला हुआ दरवाज़ा अब बंद कर लिया ।

अगले दिन जब हिमांशु अपने फ्लैट में स्टडी-टेबल के सहारे लगी चेयर पर बैठकर पढ़ाई कर रहा था तब उसकी निगाह सामने वाले फ्लैट की खुली हुई खिड़की पर गई लेकिन वहाँ उस वक्त कोई भी नहीं था । एक निगाह उस तरफ़ डालने के बाद हिमांशु दोबारा से अपनी पढ़ाई में व्यस्त हो गया ।

दरअसल हिमांशु यहाँ नोएडा की एक कंपनी में जॉब करता था और साथ के साथ वो अपनी सीए की तैयारी भी कर रहा था और चूंकि आज रविवार का दिन था इसलिए वो घर पर ही था । कुछ देर बाद पढ़ते-पढ़ते एक बार फिर से उसकी निगाह सामने के फ्लैट की उसी खुली हुई खिड़की पर गई और अब वहाँ एक बेहद खूबसूरत तथा हरा-भरा पौधा गमले समेत रखा हुआ था जिसकी हरियाली को देखना हिमांशु को एक बहुत ही सुखद एहसास से सराबोर कर रहा था !

हिमांशु कुछ देर तक अपलक उस पौधे को निहारता रहा और फिर वो वहाँ से उठकर किचेन की ओर चल दिया । कुछ देर बाद वो अपने हाथों में एक कॉफी का मग और कुछ घर का बना हुआ स्नैक्स लेकर वापिस उसी जगह पर लौटा । ये स्नैक्स उसे उसकी शादीशुदा बड़ी बहन ने बनाकर दिये थे जो अभी पिछले हफ्ते ही फरीदाबाद से उससे यहाँ नोयडा मिलने आयी थी । दरअसल हिमांशु की माँ का देहांत अभी कुछ तीन या चार साल पहले ही हुआ था और हिमांशु का उसके पिता जी से तो छत्तीस का आंकड़ा था तो बस अपनी माँ की तेरहवीं के दूसरे दिन ही उसने अपने पिता जी और उनके घर से मुँह मोड़ लिया था ।

कॉफी की चुस्कियां लेते हुए हिमांशु बाहर के मौसम का मुआयना करने का प्रयास कर रहा था कि बारिश होगी या नहीं क्योंकि बाहर काली-काली घटाओं नें पूरे आसमान पर अपना कब्जा जमा रखा था तभी अचानक ही उसकी नज़र फिर से उसी खिड़की पर जाकर टिक गई जहाँ उसे कुछ हलचल होती हुई महसूस हो रही थी , शायद उस खिड़की पर कोई पर्दा लगा रहा था और हिमांशु को बहुत अधिक प्रयास के बाद भी वहाँ कोई न दिखकर सिर्फ उस कोई का सुर्ख लाल आँचल ही दिख पाया । अब वो आँचल था या दुपट्टा ये बात तो क्लियर नहीं हो पायी मगर हाँ वहाँ किसी न किसी मोहतरमा की मौजूदगी पर तो अब एक मोहर ज़रूर ही लग चुकी थी ! !

अगले दिन हिमांशु बाइक लेकर सामने वाले फ्लैट के नीचे अपने दोस्त रोहित का इंतज़ार कर रहा था क्योंकि वो और उसका दोस्त रोहित एक ही कंपनी में कार्यरत थे और दोनों रोजाना एक साथ ही ऑफिस आया-जाया करते थे ।

काफी समय बीत गया लेकिन रोहित नीचे नहीं आया और जब हिमांशु नें उसको फोन मिलाया तो वो भी नॉट रीचेबल बता रहा था ।

"अरे...यारररर..आज तो ये लड़का पक्का मरवाएगा, बहुत लेट हो गए यारररर", अपने आप में ही बड़बड़ाता हुआ हिमांशु फटाफट से लिफ्ट के सामने पहुंच गया मगर कहते हैं न कि कोई भी मुसीबत कभी अकेले नहीं आती लिफ्ट में कुछ मेनटिनेंस का काम चल रहा था और पूछने पर टैक्नीशियन नें बताया कि सर बस दस मिनट !

'दस मिनट'..., हिमांशु के मुँह से जोर से निकला ! अब हिमांशु बड़ी ही तेजी से बड़बड़ाते हुए सीढ़ियाँ चढ़ रहा था और दूसरी तरफ़ से एक मोहतरमा बेखयाली में चली आ रही थीं और वो भी कुछ डरी-सहमी सी !

दोनों एक-दूसरे से यूं टकराये कि हिमांशु तो गिरते-गिरते बड़ी ही मुश्किल से सम्भला और वो मोहतरमा तो इस अचानक हुए टकराव से बहुत ही बुरी तरह से चौंककर डर गईं !

हिमांशु के मुँह से बार-बार बस सॉरी ही निकल रहा था जबकि उसे खुद ही पता नहीं था कि गलती आखिर थी किसकी ?

और फिर इससे फर्क भी क्या पड़ता है क्योंकि एक तो मोहतरमा का यूं हिमांशु की वजह से इस कदर सहम जाना उसे बहुत बुरा लग रहा था और ऊपर से वो मोहतरमा को एक बार देखते ही अब बस उन्हें देखता ही जा रहा था हालांकि वो कोई हूर की परी के मानिंद तो न थीं मगर फिर भी उनके चेहरे की गज़ब की मासूमियत, उनका साँवला-सलोना सा रंग, गहरी-गहरी आँखें , गुलाब की पंखुड़ियों से नाज़ुक होंठ और नपातुला सा बदन किसी को भी दीवाना बना देने के लिए काफी थे ।

अपने आपको बड़ी ही मुश्किल से सम्भालते हुए मोहतरमा नें कहा...इट्स ओके ! वो कुछ देर तक वहीं सीढ़ियों पर बैठ गई ।

'आप ठीक हैं न', हिमांशु नें बड़ी ही आत्मीयता के साथ पूछा !

हम्म कहकर सिर हिला दिया उसनें और फिर हिमांशु को अपने पास खड़ा हुआ देखकर उसनें वहाँ से उठने का फैसला किया और फिर वो उन सीढ़ियों से उठकर नीचे की ओर जाने लगी और हिमांशु जिसे कि ऊपर,अपने दोस्त रोहित के पास जाना था अब वो भी उन मोहतरमा के पीछे-पीछे हो लिया ।

सीढ़ियाँ उतरते ही वो तेजी से बढ़कर आगे की ओर मुड़ गई और हिमांशु अपनी बाइक की तरफ़ चल दिया,जहाँ उसका दोस्त रोहित न जाने कबसे उसके इंतज़ार में खड़ा था । हिमांशु को देखकर रोहित उसे न जाने क्या-क्या बातें सुनाने लगा लेकिन हिमांशु को तो जैसे कुछ भी सुनाई ही नहीं दे रहा था । वो बेखयाली में बस वहाँ खड़ा ही था कि तभी रोहित नें हिमांशु की इस शिथिलता को भाँपते हुए आज बाइक स्वयं चलाने का फैसला किया जिसपर हिमांशु चुपचाप उसके साथ पिछली सीट पर बैठ गया । वो कब ऑफिस पहुँचा और कब शाम को वापिस आया , उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था । उसे तो बस ये लग रहा था कि वो अभी भी उन सीढ़ियों पर बैठी हुई उस मोहतरमा को निहार रहा है और वो बार-बार कह रही है.... इट्स ओके...इट्स ओके...इट्स ओके !

चलिए अब करते हैं अगली कड़ी का इंतज़ार...आप पढ़ने के लिए और मैं लिखने के लिए...😊😊😊
क्रमशः

लेखिका...
💐निशा शर्मा💐